दिगंबर अखाड़ा, वैष्णव संप्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़ों में से सबसे बड़ा और विशेष पहचान रखने वाला है। यह अखाड़ा अपनी विशिष्ट परंपराओं, वेशभूषा और धार्मिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। इसके साधु अपनी अलग पहचान के लिए जाने जाते हैं, जिनमें माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड तिलक, गले में गुच्छे जैसी कंठीमाला, लंबी लटों से सजे जटाजूट और सफेद श्वेतवस्त्र शामिल होते हैं। इन साधुओं का प्रतीक श्वेत अंगरख और धोती की वेशभूषा है, जो उनकी धार्मिक पहचान को दर्शाती है।
इसके साधु अपनी अलग पहचान के लिए जाने जाते हैं, जिनमें माथे पर उर्ध्व त्रिपुंड तिलक, गले में गुच्छे जैसी कंठीमाला, लंबी लटों से सजे जटाजूट और सफेद श्वेतवस्त्र शामिल होते हैं। इन साधुओं का प्रतीक श्वेत अंगरख और धोती की वेशभूषा है, जो उनकी धार्मिक पहचान को दर्शाती है
इस पंरपरा के निर्वाणी और निर्मोही दोनों अखाड़े दिगंबर अनि के सहायक के तौर पर धर्म प्रचार की सुगठित सेना के रूप में काम करते हैं। वैरागी वैष्णव संप्रदाय का श्रीदिगंबर अनि अखाड़ा अपनी विशेषताओं के लिए जाना जाता है। इसका सिर्फ नाम दिगंबर है, जिसके साधु वस्त्रधारी होते हैं, नागा वैरागी नहीं।
महाकुंभ के समय ही होता है श्रीमहंत का चुनाव
दिगंबर अनि अखाड़े में चुनाव के लिए लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई जाती है। सर्वोच्च पद श्रीमहंत का है, जिसका हर 12 वर्ष पर महाकुंभ के दौरान ही चुनाव होता है। इस अखाड़े के कई उप अखाड़े भी गठित हैं। नंदराम दास बताते हैं कि खाकी अखाड़ा, हरिव्यासी अखाड़ा, संतोषी अखाड़ा, निरावलंबी अखाड़ा, हरिव्यासी निरावलंबी अखाड़ा इसी के अंग के रूप में काम करते हैं।
वर्तमान स्थिति और भविष्य
आज के समय में दिगंबर अखाड़े के पास दो लाख से अधिक वैष्णव संत हैं, जो अपनी धार्मिक सेवा और साधना में व्यस्त रहते हैं। अखाड़े का दायरा और प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है, और इसके मठ-मंदिर देशभर में फैले हुए हैं। यह अखाड़ा न केवल धार्मिक क्रियाकलापों में सक्रिय है, बल्कि समाज में धर्म, संस्कृति और आदर्शों के प्रचार-प्रसार में भी अहम भूमिका निभाता है।
दिगंबर अखाड़ा न केवल एक धार्मिक संस्था है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और वैष्णव धर्म के संरक्षण और प्रचार का प्रमुख केंद्र बन चुका है। इसके सिद्धांत और परंपराएं आज भी लाखों अनुयायियों के जीवन का हिस्सा हैं, जो इसे अपने आस्थाओं और विश्वासों का आधार मानते हैं।