Ustad Zakir Hussain Death :तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन, 73 साल की उम्र में ली आखिरी सांस

संगीत की दुनिया के सबसे बड़े और सबसे प्रभावशाली तबलावादक उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने 16 दिसंबर 2024 को सैन फ्रांसिस्को के एक अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली। उनका निधन संगीत की दुनिया के लिए अपूरणीय क्षति है। 2023 में भारत सरकार ने उनके अतुलनीय संगीत योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा था, और उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

संगीत का विरासत से सफर

आपको बता दें कि उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत विरासत में मिला था। उनके पिता, उस्ताद अल्लाह राखा, देश के प्रसिद्ध तबलावादक थे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तबला बजाने के लिए मशहूर थे। जब जाकिर हुसैन महज डेढ़ दिन के थे, उनके पिता ने उन्हें ताल सुनाई, और उसी समय से उनके जीवन में संगीत की गूंज सुनाई दी। इस आशीर्वाद ने जाकिर हुसैन को दुनिया के सबसे बड़े उस्ताद बनने का मार्ग दिखाया।

घर के बर्तनों से तबला बजाना शुरू किया

बचपन में ही जाकिर हुसैन का संगीत के प्रति प्रेम अत्यधिक था। घर के बर्तनों से धुनें निकालने की उनकी कला मशहूर थी। वे किचन के बर्तनों को उलटकर, उन पर तबला बजाते थे और अनोखी धुनें तैयार करते थे। किताब ‘Zakir and His Tabla: Dha Dhin Dha’ में भी इसका उल्लेख किया गया है। बचपन में उनका यह अभ्यास ही बाद में उन्हें तबला बजाने में माहिर बना।

पिता से मिली प्रेरणा और सिखने की शुरुआत

उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने पिता से ही तबला बजाने के गुण सीखे थे। उनके पिता ही थे जिन्होंने जाकिर को सबसे पहले तबले पर हाथ बैठाना और धुनों में संतुलन बनाना सिखाया। इसके बाद, उन्होंने उस्ताद खलीफा वाजिद हुसैन, कंठा महाराज, शांता प्रसाद और उस्ताद हबीबुद्दीन खान जैसे महान संगीतज्ञों से भी संगीत की शिक्षा ली।

विश्वभर में छाई जाकिर हुसैन की धूम

उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में प्रसिद्ध था। उन्होंने अपनी अद्वितीय तबला कला के जरिए तीन बार ग्रैमी अवार्ड जीते, और उनके योगदान को वैश्विक स्तर पर सराहा गया। उनकी कला ने न केवल भारतीय संगीत की धारा को मजबूत किया, बल्कि दुनिया के हर कोने में उनके प्रशंसक बने।

भारत रत्न की सिफारिश

देशभर के प्रशंसक उन्हें भारत रत्न दिलाने की सिफारिश करते हैं, क्योंकि उनकी कला और समर्पण ने भारतीय संगीत को एक नई ऊँचाई दी है। भले ही उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया हो, उनके योगदान को देखते हुए कई लोग उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहे हैं। उस्ताद जाकिर हुसैन का निधन संगीत जगत के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनकी कला और उनकी धुनें हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगी। उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा, और वे हमेशा संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित रहेंगे।

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